पुजारियों की नियुक्ति वंश परम्परा और गुरू-शिष्य परम्परा अनुसार
अध्यात्म विभाग द्वारा शासन संधारित देव स्थानों के पुजारियों की नियुक्ति और पदमुक्ति संबंधी प्रक्रिया के तह पद रिक्त होने पर निर्धारित प्रक्रिया और नियमों का पालन किया जाकर नियुक्तियाँ प्रदान की जायेंगी। पुजारियों की नियुक्ति में वंश परम्परा और गुरू-शिष्य परम्परा को प्राथमिकता दी जायेगी। पुजारियों के नाम की प्रविष्टियाँ खसरे में भी की जायेगी। तहसील एवं पटवारी स्तर पर पुजारी पंजी संधारित होगी।उल्लेखनीय है कि पहली बार प्रदेश सरकार द्वारा पुजारियों की नियुक्तियों के संबंध में नियम और प्रक्रिया निर्धारित की गई है। शासन द्वारा संधारित देव स्थानों के पुजारियों की नियुक्ति हेतु 9 अर्हताएँ तय की गई हैं। नियुक्ति की प्रक्रिया भी निर्धारित की गई है। पुजारियों के कर्त्तव्य और दायित्वों के साथ ही पुजारियों की पदमुक्ति तथा पद रिक्त होने पर व्यवस्था के नियम भी बनाये गये हैं। यह नियम नवीन पुजारी की नियुक्ति के लिए ही प्रभावी होंगे। पूर्व से कार्यरत पुजारी के लिए यह नियुक्ति प्रक्रिया प्रभावी नहीं होगी।
नियुक्ति की अर्हताएँ पिता पुजारी होने की दशा में उसी वंश के आवेदक को अन्य सभी अर्हता पूर्ण करने पर प्राथमिकता दी जायेगी। पुजारी पद के लिये आठवीं तक शिक्षित होकर न्यूनतम उम्र 18 वर्ष एवं स्वस्थ चित्त होना आवश्यक है। पूजा विधि का प्रमाण-पत्र परीक्षा उत्तीर्ण होकर पूजा विधि का ज्ञान और शुद्ध शाकाहारी होना जरूरी है। पुजारी मद्यपान न करने वाला और अपराधिक चरित्र का नहीं होना चाहिए। देव स्थान की भूमि पर अतिक्रमण अथवा देव स्थान की अन्य सम्पत्ति खुर्द-बुर्द करने का दोषी नहीं होना चाहिए।यदि कोई मंदिर मठ की श्रेणी में आता है और उस मंदिर पर किसी सम्प्रदाय विशेष अथवा अखाड़ा विशेष के पुजारी होने की परम्परा होने पर गुरू-शिष्य परम्परा के आधार पर पुजारी की नियुक्ति प्राथमिकता से की जायेगी। किसी दरगाह, खानकाह या तकिया पर सज्जादानशीन/मुजाविर आदि की नियुक्ति में वंश परम्परा की प्रथा है, तो नियुक्ति के समय उसका ध्यान रखा जायेगा।